वैभव शर्मा , नई दिल्ली
मुकेश सैनी एक व्यापारी हैं, जिनकी नेहरू प्लेस में लेनेवो फ्रेंचाइजी शॉप है। 48 वर्षीय मुकेश कटवारिया सराय में रहते हैं और अपनी शॉप तक जाने के लिए डीटीसी बस पर निर्भर करते हैं। सुबह 7:40 बजे आने वाली डीटीसी की 511 नंबर बस कटवारिया सराय से उन्हें नेहरू विहार तक ले जाती है। बस की सुविधा सस्ती होने के कारण वे बस में सफर करते हैं। सैनी बताते हैं "डीटीसी बसों की हालत दिन प्रतिदिन जर्जर होती जा रही हैं, जिस वजह से वे अब मेट्रो या ऑटो से अपनी शॉप तक जाने का विचार कर रहे हैं।" जिससे उनकी जेब पर अतिरिक्त खर्च बढ़ेगा और वें अपने भविष्य के लिए कम पैसा बचा पाएंगे। यह कहानी महज मुकेश की ही नहीं है बल्कि उन 20 लाख लोगों की है जो रोज़ अपने दफ्तर, स्कूल कॉलेज, आदि जाने के लिए डीटीसी की बसों पर निभर हैं।
दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) के पास 3992 सामान्य बसे और 488 इलेक्ट्रिक बसे मौजूद है। जिसमें 3992 बसे में से अधिकतर बसें 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन के दौरान खरीदी गई थी, जिसे 13 वर्ष बीत चुके हैं। डीटीसी की कई बसें एक तरफ झुकी हैं, कुछ का फ्लोर टूटा है, तो कुछ बसों के दरवाजे-खिड़की भी टूटे हैं जो किसी भी नागरिक की सुरक्षा के लिए हानिकारक हो सकता है। डीटीसी में कंडक्टर के रूप में कार्य करने वाले सज्जन सिंह बताते हैं कि "डीटीसी की अधिकतर बसों की मियाद पूरी हो चुकी है। डीटीसी के अधिकार क्षेत्र में 40 डिपों आते हैं और यदि कोई डीटीसी बस कहीं रास्ते में खराब हो जाती है तो उसी डिपो से संबंधित व्यक्ति उसे ठीक करने आते जिससे बसे ठीक करने में अधिक समय लगता है और परेशानी होती है। डीटीसी को बसों की मेंटेनेंस बहुत महंगी पड़ती है और जिस वजह से डीटीसी इन पुरानी बसों पर खर्च करने से बचती है।"
सरकार और डीटीसी के बीच का तालमेल कब तक दिल्ली में नई और अधिक सुरक्षा वाली बसें ला सकेगा और कब मुकेश सैनी जैसे नागरिक को उसकी सुविधा मिल पाएगी ये तो भविष्य के गर्भ में ही छिपा है।
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