हर कोई अपने जीवन में बेहतर काम करने का इच्छुक होता है, अपने जीवन को सफल और आरामदायक बनाना चाहता है, पर इस लंबे सफर में ना जाने कितने ही पड़ाव पार करने पड़ते हैं। रोज़ सुबह उठने से लेकर रात तक में कुछ उत्पादक करना भी एक बड़ी चुनौती है। लोग भी अलग-अलग तरह का व्यक्तित्व रखते हैं, एक वो हैं जो कुछ काम ही करना नहीं चाहते, दूसरे जो काम तो करना चाहते हैं पर सिर्फ बातों तक ही सीमित रह जाते हैं, तीसरे वो हैं जो काम भी करते हैं और उन्हें कुछ काम ना करने पर अपराधबोध का सामना करना पड़ता है। इस पूरी प्रक्रिया में परिस्थिति और परिणाम भी बहुत महत्व रखते हैं, कभी लगता है पूरा जहां अपना है और कभी लगता है, ये काम मुझसे नहीं हो पाएगा। इसी कोलाहल के बीच काम करते रहना एक चुनौती भी है और कला भी।
"कभी कभी तो नहीं दिखती कोई किरण,
और कभी लगता है सब रास्ते हमारे हैं"
- वैभव की डायरी
रोड पर फर्राटा भरती जर्जर डीटीसी बसें, आए दिन हादसों को दे रहीं हैं दावत
वैभव शर्मा , नई दिल्ली
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