एक ओर भीड़ लगी हो, दूसरी ओर आप अकेले हों, तो भयभीत होना ठीक नहीं। एक पूरी जमात जो गलत रास्ते पर है या कहें जो काम वें कर रहें हैं वो आपका दिल गवाही नहीं देता तो आप उनसे अलग होकर चलिए। अकेले चलने में रास्ता आसान बिल्कुल नहीं है, ना कभी था, पर मन की आवाज़ के विपरीत चलकर किया काम भी ठीक नहीं है। अकेले रहकर भी हर वो चुनौती पार कि जा सकती है, जो साथ में हो । बस अकेले चलने में आपका दिल मजबूत होना जरूरी है। एक बार जो ठान लिया मुड़ने का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होता, अगर आप इतना बल रखते हैं, तो अकेले चलिए। दुनिया के विभिन्न धर्मों की सीख में, कविता में, साहित्य में अकेले चलने का जिक्र है।
बुद्ध कहते हैं "अप्प दीपो भव :" अपने दीपक खुद बनो, किसी के सहारे पर निर्भर ना रहो, बांग्ला में गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर का मशहूर गीत है "एकला चलो रे" तुम्हारी आवाज़ पर कोई ना आए तो अकेला चलो और ना जाने कितने ऐसे उदाहरण होंगे जो अकेले चलने को प्रोत्साहित करते हैं। इस लेख का अर्थ ये बिल्कुल नहीं है आप एकता के सिद्धांत को भूलें, पर ये अर्थ जरूर है आपको कुछ लड़ाई अकेले ही लड़नी पड़ती हैं, जहां आपकी तरफ सत्य हो।
बचपन में पिलखुवा के लेखक अशोक गोयल का एक
गीत सुना था जो मन में शिलालेख की तरह छप गया है, इस गीत को मैं अक्सर लय में गाता हूँ:-
क्या कर सकता है अकेला
यह मत कहो कि जग में कर सकता क्या अकेला,
लाखों में वार करता है सूरमा अकेला l
आकाश में करोड़ो तारे जो टिमटिमाते,
अँधियारा जग का हरता है चंद्रमा अकेला l
लाखों ही जंतुओं पर बिठलाए धाक अपनी,
आजाद शेर वन में है घूमता अकेला l
लंकापुरी जलाकर रावण का मद मिटाकर,
हनुमान राम दल को वापस चला अकेला l
लाखों-करोड़ो मन को दिन-रात देखते हो,
ले जाता खींच करके इंजन ही तो अकेला l
अकबर-शाहजहां के दरबार में अमर सिंह,
बल अपनी कटारी का दिखला गया अकेला,
निज दूर करके तम को देता प्रकाश हमको,
वह सूर्यदेव देखों चलता सदा अकेला l
- वैभव की डायरी
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