मेरी डायरी आज तुम्हें एक आँखों देखी कहानी सुनाऊंगा, सोनी नोएडा के मेट्रो स्टेशन के बाहर फूल बेचती है, वो महज़ 6 साल की है। जिस उम्र में उसे अटखेलियां दिखानी चाहिए थी, उस उम्र में वो दिन के 5 से 6 घंटे स्टेशन के बाहर लोगों से फूल खरीदने के लिए मिन्नते करती है। सोनी के परिवार में 6 सदस्य है, उसका परिवार मेट्रो स्टेशन की सिढ़ियों के नीचे सोता है और ये तब ज्यादा भयावह हो जाता है जब सर्दियों का मौसम चल रहा हो। परिवार के 6 सदस्यों के पास 3 कंबल हैं जिसमें वो 6 लोग मुश्किल से ही सो पाते हैं।
सोनी अकेली ऐसी बच्ची नहीं है, भारत में सोनी जैसे लाखों ऐसे बच्चे हैं जो बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन और मेट्रो स्टेशन पर छोटी उम्र में ऐसे काम करने को मजबूर हैं। सोनी बताती है वो पढ़ना चाहती है पर घर के हालात उसके स्कूल जाने के सपने में बाधा बन रहे हैं। जिस उम्र में इन बच्चों को खेल- कूद करनी चाहिए वें भीषण ठंड और में ये काम कर रहे हैं।
सोनी जब किसी को फूल खरीदने के लिए पूछती है तब उसकी आंखों में एक आशा होती है पर हर बार इस आशा का जवाब सकारात्मक नहीं मिलता, उसे कई बार दुत्कार मिलती है। लोग जब फूल नहीं खरीदना चाहते तब बहुत ही खीजकर जवाब देते हैं और कुछ लोग तो गाली तक दे देते हैं। नन्हे बच्चों के मन पर इस व्यवहार का बहुत ही विपरीत असर पड़ता है और वें खुद को तिरस्कृत मानने लगते हैं।
कुछ ही दिन पहले जब सोनी स्टेशन के पास की एक दुकान पर खड़े कुछ लोगों को फूल बेच रही थी तो उससे गलती से एक टेबल पर पांव लग गया, टेबल गिरने पर दुकानदार ने सोनी को ज़ोर का धक्का मारा जिससे उसके हाथ पर चोट आई है। सोनी जैसे लाखों बच्चों के ऐसी उपेक्षा झेलनी पड़ती है और इनकी कोई सुनवाई भी नहीं होती।
गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे इन नन्हे बच्चों को भरपूर पोषण नहीं मिलता, अच्छी शिक्षा से वे वंचित रह जाते हैं, उन्हें पीने के लिए साफ पानी और शौच आदि के लिए ठीक स्थान ना मिलने की वजह से ये बच्चे ज्यादा बीमार पड़ते हैं। ये भी सोनी जैसे लाखों बच्चों के लिए जीवन की एक चुनौती है, जिनके साथ वे जीने के लिए विवश हैं।
ढ़ेरों चुनौतियों के बाद भी सोनी रोज सुबह से शाम तक इसी आशा में फूल बेचती है कि एक दिन उसके भी जीवन में वो सब सुविधाएं होंगी जो उसकी उम्र के बच्चों के पास होती हैं।
ये थी सोनी की कहानी अब तुम्हें राजेश जोशी की कविता 'बच्चे काम पर जा रहे हैं' के साथ छोड़े जा रहा हूँ, अपना ख्याल रखना मेरी डायरी...
"कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह-सुबह
बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?
क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्या दीमकों ने खा लिया है
सारी रंग-बिरंगी किताबों को
क्या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
क्या सारे मैदान, सारे बग़ीचे और घरों के आँगन
ख़त्म हो गए हैं एकाएक
तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में?
कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज़्यादा यह
कि हैं सारी चीज़ें हस्बमामूल
पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुज़रते हुए
बच्चे,
बहुत छोटे छोटे बच्चे काम पर जा रहे हैं।
- वैभव की डायरी
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