वैभव शर्मा , पानीपत
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी हरियाणा के शहर पानीपत में दीपावली के पर्व का भव्य आयोजन हुआ । लोग दीपावली के लिए तो खासे उत्साहित रहते ही हैं पर पानीपत की एक परंपरा जिसका जुड़ाव सीधे पाकिस्तान से है, वो इस उत्साह का मुख्य कारण है। पानीपत की प्रख्यात हनुमान स्वरूप प्रथा इस शहर को एक अलग पहचान देती है। इस प्रथा का इतिहास 82 वर्ष पुराना है और पाकिस्तान के लैया शहर से जुड़ा है।
भगवा सिंदूर, लाल लंगोट और 15-20 किलों की हनुमान स्वरूप की मूर्ति गर्दन पर धारण कर हनुमान स्वरूप बना जाता है। बीते 75 वर्षों से यह प्रथा पानीपत में कायम है और इसमें भगवान हनुमान के प्रति श्रद्धा का अनूठा उदाहरण देखने को मिलता है। पिछले 16 वर्षों से 'हनुमान स्वरूप' बनते आ रहे जगतार सिंह ने विस्तार में इस परंपरा के बारे में बताते हुए कहा "यह प्रथा 1941 में पाकिस्तान के लैया शहर में प्रारंभ हुई थी और विभाजन के बाद 1948 से निरंतर पानीपत शहर में निभाई जा रही है। इसमें व्रतधारी दशहरे से 40,21 या 11 दिन पहले हनुमान जी के विशेष स्वरुप को सम्मुख रख कठिन व्रत करते हैं। इस व्रत में ब्रह्मचर्य का पालन, आचार-विचार की शुचिता, मानसिक-शारीरिक पवित्रता, आहार, अनुशासन, ध्यान और साधना इत्यादि का विशेष महत्व होता है।" हनुमान का स्वरूप चाक मिट्टी या पेपर मेशी से बनाया जाता है, जो एक 4 से 5 फुट ऊंचा मुकुट होता है। अष्टमी से दीपालवली तक व्रतधारी इस स्वरूप को धारण कर भक्तों को गली-कूचों में दर्शन देने निकलते हैं। इन स्वरूपों के साथ उनके अनुयाई भी ढोल-ताशों की थाप पर नाचते-कूदते चलते हैं। यह कार्यक्रम विभिन्न हनुमान सभाओं द्वारा आयोजित कराया जाता है। लोग अपने घरों व दुकानों में इस मूर्ति स्वरूप को आमंत्रित करते हैं और पूर्ण भक्ति भाव से पूजा अर्चना करते हैं।इस कार्यक्रम में इस वर्ष नगर परिक्रमा और शोभायात्रा निकाली गई, जिसमें शहर के सभी लोग सम्मलित हुए । जिस दौरान लोगों ने फूलों की वर्षा कर इनका स्वागत- सत्कार किया और 'जय हो वीर' के उद्घोष के साथ पूरा माहौल राममय बन जाता है।
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